तटीय क्षेत्रों के संरक्षण एवं सुरक्षा के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1991 में CRZ अधिसूचना जारी की थी, जिसे समय-समय पर प्राप्त ज्ञापनों और सुझावों को ध्यान में रखते हुए 2011 में संशोधित किया गया था।
केन्द्रीय सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 ( 1986 का29 ) की धारा3 की उपधारा(1) और उपधारा(2) के खंड(v) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए तटीय विनियमन जोन अधिसूचना2011 के तहत तटीय क्षेत्रों के मछुआरा समुदायों और अन्य स्थानीय समुदायों की आजीविका की सुरक्षा और प्राकृतिक जोखिमों, ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र स्तर में वृद्धि के खतरों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित सतत विकास को बढ़ावा देने के अतिरिक्त, तटीय खंडों और समुद्री क्षेत्रों के अद्वितीय पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा के उद्देश्य से अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह और लक्षद्वीप तथा इन द्वीपसमूहों के आस-पास के समुद्री क्षेत्रों को छोड़कर देश के तटीय खंडों और उसकी राज्यक्षेत्रीय सागर खंड को निम्नानुसार तटीय विनियमन जोन के रूप में घोषित किया गया है :-
(i)उच्च ज्वार रेखा( HTL ) से लेकर समुद्र की ओर अभिमुख500 मीटर का भू-क्षेत्र
(ii) CRZ उन क्षेत्रों पर भी लागू होगा जो
स्थलीय भाग की तरफ उच्च ज्वार रेखा से50 मीटर विस्तृत हो या क्रीक की चौड़ाई जो भी कम हो,
इसमें ज्वार से प्रभावित जल निकाय भी शामिल है, जो कि समुद्र से जुड़े हुए हैं। इन जल निकायों में वह दूरी जहां तक ज्वार से प्रभावित जल निकायों के आस-पास विकासात्मक कार्यकलापों को विनियमित किया जाना है का निर्धारण वर्ष की शुष्क अवधि में लवणीयता की मात्रा को पांच भाग प्रति हजार(पीपीटी) को आधार मानकर किया जाएगा। ज्वार से प्रभावित होने वाली दूरी को तटीय जोन प्रबंधन योजनाओं(जिसे इसमें इसके पश्चात् सीजेडएमपी के रूप में कहा गया है) के अनुसार अभिज्ञात करके उसका निर्धारण किया जाएगा।
(iii) अंतर-ज्वारीय क्षेत्र अर्थात् उच्च ज्वार रेखा और निम्न ज्वार रेखा(LTL) के मध्य का स्थलीय क्षेत्र
(iv) सागरीय क्षेत्र में क्षेत्रीय जल और निम्न ज्वार रेखा के बीच स्थित जल और नित्तल का क्षेत्र तथा ज्वार प्रभावित जल क्षेत्र के किनारे और समुद्र के किनारे पर स्थित ज्वार रेखा के बीच क्षेत्र
समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी के प्रबंधन एवं संरक्षण, तटीय क्षेत्रों के विकास, पारिस्थितिकी पर्यटन, तटीय समुदायों की आजीविका से जुड़े विकल्प एवं सतत विकास इत्यादि से संबंधित प्रावधानों की व्यापक समीक्षा के लिए विभिन्न तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ अन्य हितधारकों की ओर से भी प्राप्त अनेक ज्ञापनों के आधार पर इस अधिसूचना में व्यापक संशोधन करने की जरूरत महसूस की गई।
इसे ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने डॉ. शैलेश नायक (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव) की अध्यक्षता में जून 2014 में एक समिति गठित की थी जिसे सीआरजेड अधिसूचना, 2011 में उपयुक्त बदलावों की सिफारिश करने के लिए तटीय राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों की चिंताओं के साथ-साथ विभिन्न मुद्दों पर भी गौर करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
शैलेश नायक समिति ने राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ व्यापक सलाह-मशविरा करने के बाद वर्ष 2015 में अपनी सिफारिशें पेश कर दी थीं। तटीय राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के सांसदों के साथ-साथ भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों के साथ भी सलाह-मशविरा करके इन सिफारिशों पर फिर से गौर किया गया। इसके बाद अप्रैल, 2018 में एक मसौदा अधिसूचना जारी कर आम जनता से उनके सुझाव आमंत्रित किए गए थे।
जनवरी 2019 में भारत सरकार ने तटीय नियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone-CRZ) अधिसूचना, 2018 को मंजूरी दी है।
CRZ, 2011 पर शैलेश नायक समिति रिपोर्ट के महत्वपूर्ण बिंदु:
§ समिति ने पाया कि 2011 के विनियमनों ने, विशेष रूप से निर्माण के संदर्भ में, आवास, मलिन बस्ती विकास, जीर्ण संरचनाओं तथा
अन्य खतरनाक इमारतों के पुनर्विकास को प्रभावित किया है।
§ इसने प्रस्तावित किया कि शक्तियों का हस्तांतरण राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ स्थानीय निकायों को भी किया जाना चाहिए।
§ इसने सुझाव दिया कि CRZ । और || क्षेत्रों (उच्च ज्वार रेखा से 500 मी. पर स्थित जो क्रमशः विकसित एवं अपेक्षाकृत अबाधित हैं) को राज्य या केन्द्रीय मंत्रालय के पर्यावरण विभाग के अधीन नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि इसे राज्य के शहरी और नियोजन विभागों के नियमों द्वारा निर्देशित होना जाना चाहिए।
§ इसके द्वारा “नो डेवलपमेंट जोन” को “सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों के मौजूदा 200 मी. से केवल 50 मी. तक कम करना प्रस्तावित किया गया है।
सीआरजेड अधिसूचना, 2019 :प्रमुख विशेषताएं
1. CRZ का वर्गीकरण:(2011 )
CRZ-I क्षेत्र पर्यावरणीय रूप से अत्यंत महत्पूर्ण क्षेत्र होते हैं, जिन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
§ CRZ-IA: यह पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों तथा ऐसी भूआकृतिक विशेषताओं का निर्माण करता है जो तट की समग्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सीआरजेड I A में निम्नलिखित क्षेत्र सम्मिलित होंगे
(I)कच्छ वनस्पति यदि कच्छ वनस्पति क्षेत्र1000 वर्ग मीटर से अधिक है तो कच्छ वनस्पति के किनारे50 मीटर के क्षेत्र को बफर क्षेत्र के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा और ऐसे क्षेत्र में सीआरजेड-I A सम्मिलित होगा।
(ii) प्रवाल और प्रवाल भित्ति;
(iii) बालू के टीले
(v)जैविक रूप से सक्रिय नमभूमि(मफ्लैट)
(V)जैवमंडल रिजर्वो सहित वन्यजीव(संरक्षण) अधिनियम, 1972 (1972 का53), वन(संरक्षण) अधिनियम,1980 (1980 का69) या पर्यावरण(संरक्षण) अधिनियम, 1972 (1972 का53) के उपबंधों के अधीन राष्ट्रीय उद्यान, समुद्री पार्क, अभयारण्य, रिजर्व वन, वन्यजीव पर्यावास और अन्य संरक्षित क्षेत्र
(vi) नमकीन दलदल
(vii) कछुआ प्रजनन स्थल
(vii) हॉर्स शू केकड़े का पर्यावास
(ix) समुद्री घास का मैदान
(x) पक्षियों के प्रजनन का स्थान
(xi) पुरातात्विक महत्व के क्षेत्र या संरचनाएं और धरोहर स्थल ।
§ CRZ-I B: अंतर-ज्वारीय क्षेत्र अर्थात् निम्न ज्वार रेखा तथा उच्च ज्वार रेखा के मध्य का क्षेत्र।
CRZ-II यह नगरपालिका सीमाओं में या अन्य विधिक रूप से अभिहित मौजूदा शहरी क्षेत्रों में तटरेखा तक या उसके समीप विकसित स्थलीय क्षेत्रों का गठन करता है।
CRZ-III क्षेत्र – ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अबाधित भूमि और मौजूदा नगरपालिका सीमाओं के मध्य ,किनारे के समीप स्थित क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती है, इसे दो श्रेणियों में बांटा गया है:
§ CRZ-III A,: ये वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति वर्ग किलोमीटर 2161 के जनसंख्या घनत्व के साथ घनी आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्र हैं। इस तरह के क्षेत्रों में उच्च ज्वार रेखा (एचटीएल) से 50 मीटर का “नो डेवलपमेंट जोंस”(NDZs:कोई विकास जोन नहीं) के रूप में चिह्नित किया जाएगा।जबकि सीआरजेड अधिसूचना, 2011 में एचटीएल से 200 मीटर का ‘एनडीजेड’ इसके लिए निर्दिष्ट किया गया था, क्योंकि इस तरह के क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की ही भांति समान विशेषताएं हैं।
§ CRZ-III B उन ग्रामीण क्षेत्रों को संदर्भित करता है जहाँ जनसंख्या घनत्व 2,161 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. से कम है। ऐसे क्षेत्रों में उच्च ज्वार रेखा से 200 मी. तक का क्षेत्र NDZ होगा।
CRZ-IV, इसके अंतर्गत जलीय क्षेत्र सम्मिलित होता है। इसे भी दो भागों में विभाजित किया गया है।
§ CRZ-iVA, समुद्र की ओर निम्न ज्वार रेखा से 12 नॉटिकल माइल के मध्य का जलीय और समुद्र नितल क्षेत्र।
§ CRZ-iVB, इसके अंतर्गत ज्वार प्रभावित जल निकाय के किनारे पर स्थित LTL और किनारे के विपरीत दिशा में स्थित LTL के मध्य के जलीय क्षेत्र और समुद्री नितल क्षेत्र को शामिल किया गया है।
CRZ के अंतर्गत प्रतिबंधित गतिविधियाँ
§ नए उद्योगों की स्थापना, मौजूदा उद्योगों का विस्तार, परिचालन या प्रक्रियाएं।
§ तेल का निर्माण या संचालन, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना के अंतर्गत निर्दिष्ट खतरनाक पदार्थों
का भंडारण या निपटान।
§ नई मत्स्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना। भूमि-सुधार, सागरीय जल के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित या विक्षुब्ध करना।
§ उद्योगों, शहरों या कस्बों और अन्य मानवीय बस्तियों से अनुपचारित अपशिष्ट या बहिःस्राव का निस्सरण।
§ निर्माण मलबे, औद्योगिक ठोस अपशिष्ट, भूमि भराव के उद्देश्य हेतु फ्लाई ऐश सहित शहर या कस्बे के अपशिष्ट का निपटान।
§ उच्च अपरदन वाले तटीय किनारे पर बंदरगाह और पत्तन परियोजनाएं।
§ रेत, चट्टानों तथा अन्य अधःस्तर पदार्थों का खनन।
§ रेत के सक्रिय टीलों की ड्रेसिंग या उनमें परिवर्तन करना।
§ जलीय तंत्र और समुद्री जीवन की सुरक्षा हेतु तटीय जल में प्लास्टिक का निपटान प्रतिबंधित होगा।
तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 2019 में संशोधन करने के लिए 1 नवंबर, 2021 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी मसौदा अधिसूचना पर मछुआरों ने कड़ी आपत्ति जताई है।
मंत्रालय ने सीआरजेड अधिसूचना, 2019 में आठ संशोधनों का प्रस्ताव किया था, जिसमें राज्य तटीय प्रबंधन क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण को सीआरजेड मंजूरी देने की शक्तियां सौंपने की मांग की गई थी, अन्वेषणात्मक ड्रिलिंग कार्यों के लिए वैधानिक सीआरजेड मंजूरी से छूट, और तटरेखा से सैंड बार (बेरियर) को हटाने की मांग की गई थी। (राज्य सरकारों और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) द्वारा हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (DGH) के द्वारा इस सम्बन्ध में मांग की गई थी । राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (NCZMA) ने भी अपनी 42वीं बैठक के दौरान इन संशोधनों के पक्ष में सिफारिश की थी। 23 मार्च, 2021 को आयोजित किया गया।
100 वर्ग किमी से अधिक भौगोलिक क्षेत्रों वाले द्वीपों में गैस आधारित बिजली संयंत्र की स्थापना की छूट का प्रावधान भी किया जाना है ।
मछुआरों ने बताया कि संशोधनों का उद्देश्य पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र (ESA) और प्रादेशिक जल में तेल, गैस और हाइड्रोकार्बन निष्कर्षण परियोजनाओं पर प्रतिबंधों को कम करना है जो मैंग्रोव, दलदलों, लैगून और पारंपरिक मछली पकड़ने के मैदानों को सुरक्षित करते हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश तेल भंडार और अन्वेषण प्रादेशिक जल में किए जाते हैं जो तटरेखा से 12 समुद्री मील तक फैले होते हैं।
CRZ-1 और CRZ-IV क्षेत्रों में प्रस्तावित CRZ निकासी प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार को अधिकार सौंपने वाले संशोधन पर, मछुआरों ने तर्क दिया कि केंद्र राज्य सरकार के अधिकारों को ले रहा है क्योंकि CRZ-1 और CRZ-IV क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं। राज्य सरकारों का नियंत्रण। "यह राज्य की संप्रभुता पर एक अपराध है", उन्होंने कहा।
मछुआरा नेताओं ने कहा कि तेल और गैस अन्वेषण परियोजनाओं को पूर्व सीआरजेड मंजूरी प्राप्त करने से छूट देना, मछुआरों की आजीविका के प्रति कम से कम चिंता दिखाता है। जैसा कि तटीय क्षेत्रों में खोजपूर्ण ड्रिलिंग कार्यों का पिछला अनुभव विनाशकारी साबित हुआ है, ।
एक अन्य विवाद समुद्र तट से उन बालू-पट्टियों को हटाने का संशोधन है जो अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों के साथ स्वाभाविक रूप से बनते हैं। मछुआरों का कहना है कि रेत की पट्टिया पर्यावरण-संरक्षक के रूप में कार्य करती हैं जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के अलावा मछली पकड़ने वाली बस्तियों को चरम घटनाओं से रोकती हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के संशोधन से अवैध रेत खनिकों के लिए रास्ते खुल जाएंगे।
"रेत की पट्टियों को हटाने से तेजी से तटीय क्षरण होता है और समुद्र के किनारे पक्षियों और लुप्तप्राय कछुओं के घोंसले का खतरा होता है, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं।"
मछुआरा नेताओं ने कहा कि अपतटीय तेल निष्कर्षण परियोजनाएं 18 समुद्री मील तक फैली हुई हैं, जो मछली पकड़ने के संसाधनों को नष्ट कर देंगी। इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि तेल अन्वेषण कंपनियों ने तट से अधिक परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया था, कुमारवेलु ने कहा कि पूर्व AIADMK सरकार ने चतुराई से कावेरी डेल्टा जिले को संरक्षित विशेष कृषि क्षेत्र (PSAZ) के रूप में केवल किसानों के बीच राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए घोषित किया था, मछुआरों की अवहेलना की। उन्होंने अनुरोध किया, "मौजूदा डीएमके सरकार, जिसने उस समय पीएसएजेड का समर्थन किया था, को प्रादेशिक जल के क्षेत्र को पीएसएजेड फोल्ड में शामिल करना चाहिए, क्योंकि मछली पकड़ना कृषि का हिस्सा है।"
मछुआरों के कल्याण और राज्य की संप्रभुता को देखते हुए, मछुआरों ने सीआरजेड अधिसूचना 2019 में किए गए संशोधनों के मसौदे को तत्काल वापस लेने की मांग की थी, ताकि पारिस्थितिक तंत्र को और अधिक नुकसान और तटीय समुदायों के विस्थापन को रोका जा सके।
जहां तक तमिलनाडु का संबंध है, ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) और वेदांता लिमिटेड (केयर्न ऑयल एंड गैस) ने क्रमशः 40 और 274 खोजपूर्ण कुओं को ड्रिल करने का प्रस्ताव दिया था। अन्वेषण में भूकंपीय सर्वेक्षण और फ्रैकिंग जैसी पर्यावरणीय रूप से खतरनाक तकनीकों का उपयोग शामिल है। यह याद किया जा सकता है कि 16 जनवरी, 2020 के एक आदेश में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने तेल की बड़ी कंपनियों के अनुरोध के जवाब में पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता से ऑन-शोर और ऑफ-शोर तेल और गैस अन्वेषण ड्रिलिंग परियोजनाओं को छूट दी थी।