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क्या मोदी जी नेहरू जी को पीछे छोड़ देंगे? :ललित जैन


भारत में कई वर्षों के बाद एक ऐसे प्रधानमंत्री के हाथों में शासन आया है जिसके व्यक्तित्व का सामना करने वाला कोई विकल्प नजर नहीं आता।इससे पहले भारत में इंदिरा गांधी और उनसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व भी ऐसा ही था। इन तीनों व्यक्तित्वो ने अपनी जो पहचान बनाई वह आपस में तुलनीय हो सकती है तथापि इन में तुलना करने पर कोई व्यक्ति किसी एक पहलू पर एक दूसरे से आगे नजर आएगा। लेकिन मोदीजी के चरित्र की जब नेहरू जी के चरित्र के साथ तुलना की जाए तो लगता है कि मोदी जी को अभी कई मामलों में सफलता प्राप्त करनी होगी तभी उनका चरित्र नेहरू जी के व्यक्तित्व से भी आगे निकल पाएगा।

हममें अपने पूर्वजों के गुणों को धारण कर उससे भी आगे बढ़ने का गुण होना ही चाहिए। पूर्व के अनुभवों का प्रयोग कर उत्तरोत्तर विकास की तरफ बढ़ना यही मानवीय चरित्र की असली पहचान है। राजनीति के क्षेत्र में छवि निर्माण बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। कुछ लोगों का चरित्र सहज होता है और कुछ लोगों को इसके लिए विशेष प्रयास करने होते हैं। राजनीति का क्षेत्र नेतृत्व का अवसर प्रदान करता है और यह अवसर महान बनने का अवसर प्रदान करता है। व्यक्ति आम आदमी से महापुरुष की श्रेणी चढ़ जाता है। भारतीय राजनीति में मोदी जी के पास ऐसा ही एक अवसर है जिसका प्रयोग कर वह पंडित नेहरू के व्यक्तित्व के समकक्ष अपने को स्थापित कर सकते हैं, अपितु उनके व्यक्तित्व से आगे भी निकल सकते हैं।

महान व्यक्तियों को उनकी नेतृत्व क्षमता, उनके गुणों और उनके कार्यों से जाना जाता है। पंडित नेहरू के कार्य आज भले ही विशेष नजर नहीं आते हो लेकिन आजादी के समय जिस तरह की परिस्थितियां थी, उन परिस्थितियों ने और उन परिस्थितियों के अनुरूप कार्य ने पंडित नेहरू के व्यक्तित्व को भारत में प्रभुत्व पूर्ण बना दिया। उन्होंने देश को न केवल आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया अपितु वैश्विक नेता के रूप में भारत की छवि को स्थापित करने का प्रयास किया। उनके समय में गरीबी, भुखमरी और देश को आत्मनिर्भर बनाना मुख्य मुद्दे थे। इस पर उन्होंने कार्य किया उन्होंने सभी विपक्षी दलों के सदस्यों की बातों को भी महत्व देते हुए देश को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। उनकी राजनीति का स्वरूप आदर्शवादी प्रकार का था, जिसमें समावेशी विकास शब्द हालांकि प्रचलित नहीं था तथापि समावेशन के अनुरूप सभी वर्गो को आगे बढ़ने का अवसर दिया गया था। जनजातियों के लिए अपनाया गया ‘पंचशील का सिद्धांत’, पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत कुछ ऐसे ही प्रयास थे। समाजवादी विचारधारा के साथ ही साथ मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा के अनुरूप उन्होंने औद्योगिकीकरण को भी बढ़ावा दिया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंचशील का सिद्धांत और गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत आदि महत्वपूर्ण आदर्शवादी सिद्धांतों ने भी उनकी छवि को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

पंडित नेहरू का समय वह समय था जब भौतिकवाद और उपभोक्तावाद उतना प्रभावी नहीं था, जीवन में आदर्श और विचारधाराओं का विशेष महत्व था। लोगों के पास सोचने के लिए अवसर भी खूब थे। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमें वैचारिकता का पहलू कमजोर होता जा रहा है, मीडिया का महत्व बढ़ता जा रहा है। विरोधी पक्ष को अपनी बात रखने का अधिक आसान अवसर प्राप्त होता है( पहले सूचना समाज इतना विस्तृत नहीं था), परिवर्तन भी बड़े व्यापक तौर पर हो रहे हैं जिसके चलते हर कुछ जल्दी ही पुराना सा लगने लगता है। ऐसे दौर में नरेंद्र मोदी को अपने व्यक्तित्व को पंडित नेहरू के समकक्ष स्थापित करके और उनसे भी काफी आगे निकलने के लिए कुछ विशेष प्रयास करने होंगे। हालांकि इस संदर्भ में कई प्रयास किए  भी गए हैं,उनका उद्देश्य भले ही नेहरू के व्यक्तित्व से प्रतिस्पर्धा करना शायद नहीं रहा हो, लेकिन राजनीति में छवि निर्माण का अपना विशेष महत्व तो होता ही है। नेहरू जी ने ‘ट्रायस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण के साथ आजाद भारत की यात्रा शुरू की थी। उसको आज भी याद किया जाता है इसका कारण यह था कि वह समय अलग ही था और इतिहास पुस्तकों में भी इसे  स्थान मिल गया। मोदी जी ने भी जीएसटी के संदर्भ में कुछ इसी तरह के आयोजन का प्रयास किया था लेकिन प्रारंभिक स्तर पर जीएसटी के क्रियान्वयन संबंधी बाधाओं के चलते यह प्रयास ठंडा पड़ गया। हालांकि सरकार में आते समय मोदी जी ने भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का एक बड़ा मुद्दा उठाया था जो कि वास्तव में एक ज्वलंत मुद्दा था। उस पर अगर पर्याप्त सफलता मिल जाती जो बोलती भी हो तो उनके व्यक्तित्व का वजन बहुत बढ़ जाता। इस संदर्भ में उनके द्वारा विमुद्रीकरण का प्रयास किया भी गया लेकिन पर्याप्त तैयारी के अभाव में इस कार्य से लोगों को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा उससे इस प्रयास की विशिष्टता पर भी पानी फिर गया। इतिहास में शक्ति या यथार्थवादी चरित्रों की अपेक्षा आदर्शवादी चरित्रों को हमेशा विशेष स्थान मिला है महाराणा प्रताप को उनकी शक्ति के लिए नहीं बल्कि मातृभूमि के प्रति अपने आदर्शों के लिए ही याद किया जाता है पाकिस्तान पर स्ट्राइक के द्वारा कुछ समय तक देश में मोदी जी के व्यक्तित्व को बहुत प्रसिद्धि तो मिली तथापि समय के साथ इसका प्रभाव भी धीरे-धीरे फीका होता जा रहा है।

मनरेगा जैसी योजनाएं लोगों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। इस संदर्भ में मोदी जी द्वारा स्किल इंडिया मिशन,स्टार्ट अप इंडिया, आयुष्मान भारत जैसी कई योजनाएं लाई गई। आत्मनिर्भर भारत की योजना भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। लेकिन वर्तमान समय में राज्य स्तरीय सरकारों ने जिन प्रयासों को किया है इससे भी इसका श्रेय  पूरी तरह से मोदी जी को नहीं मिल पाया। इसका एक कारण बदली हुई परिस्थितियां भी है। नेहरू जी का दौर ‘कांग्रेसी व्यवस्था’ का दौर था ,जो कुछ होता था उसका श्रेय नेहरू जी को चला जाता था। लेकिन वर्तमान समय में और विशेषकर नीति आयोग द्वारा अपनाई गई बॉटम अप अप्रोच और सहयोगी संघवाद, प्रतिस्पर्धी संघवाद के दौर में मोदी जी हेतु वह स्थिति प्राप्त करना आसान नहीं है। 

ऐसी स्थिति में मोदी जी को क्या करना चाहिए कि उनका व्यक्तित्व दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह स्थापित हो सके। नेता की नीतियां कई बार दूरदर्शिता पूर्ण हो सकती हैं जिससे लोगों को कष्ट हो सकते हैं ।लेकिन ऐसी नीतियों को पसंद किया जाना मुश्किल हो जाता है अतः सफल नेता वही है जो ऐसी नीतियों को बनाएं जहां win-win परिस्थितियां हो। इस हेतु नेता को कुछ विशेष प्रकार के मुद्दों की जड़ों को पकड़ने की कोशिश करनी होती है। इस संदर्भ में हो सकता है कि भारत का संघीय ढांचा कहीं बाधक बन रहा हो तो कुछ संविधान संशोधन भी कर लिए जाने चाहिए ।वैसे भी इतने राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से इसमें बाधा नहीं आए ।इस संदर्भ में कश्मीर में संवैधानिक प्रावधानों का जिस प्रकार प्रयोग किया गया वैसा अन्य विसंगतियों को दूर करने में भी किया जाना चाहिए।

वर्तमान समय में पुलिस सुधार,मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार, सरकार का कॉर्पोरेट की तरफ झुका हुआ दिखने वाला चरित्र (जो हो सकता है देश हित में उचित नजर आता है लेकिन इसका रूप जब आम आदमी के हितों पर कुठाराघात करने वाला नजर आता है तो नेतृत्व की प्रभाविता धूमिल होने लगती है) आदि मुद्दों पर काम किया जाना चाहिए।

पुलिस सुधार हालांकि राज्य सूची का विषय है लेकिन राज्यों द्वारा इस संदर्भ में उदासीनता दिखाई जा रही है जिसके चलते आज पुलिस में अपराध की प्रवृतियां बहुत बढ़ गई है ।जिस प्रकार पंचायती राज और सहकारी क्षेत्र में राज्यों की उदासीनता के चलते केंद्र सरकार को संविधान संशोधन करना पड़ा था उसी तरह से लगता है अब संविधान संशोधन द्वारा ही पुलिस व्यवस्था में कुछ कायाकल्प हो सकता है।

मोदी जी वर्तमान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं यह कार्य अपनी जगह सही भी हैं। लेकिन वर्तमान भौतिकता पूर्ण जीवन के दौर में व्यक्ति अपने से जुड़े मुद्दों पर विशेष प्राथमिकता देता है। मिलावटखोरी आज एक ऐसा मुद्दा है जिससे आज भारत का हर एक व्यक्ति परेशान हैं और यह मिलावटखोरी हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश को कमजोर करने वाली एक गंभीर समस्या है। इस संदर्भ में तकनीकी आधार पर कुछ नवाचार करके राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा कार्यक्रम होना चाहिए जिसमें देश का प्रत्येक नागरिक इस समस्या से निपटने हेतु सक्रिय भागीदार के रूप में आगे आ सके। इस हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित सस्ती तकनीक पर आधारित प्रयोगशालाओं की एक व्यापक श्रृंखला देश के हर एक प्रमुख स्वास्थ्य केंद्र पर स्थापित कर ‘खाद्य जांच को एक मूलभूत अधिकार’ बना दिया जाना चाहिए क्योंकि मिलावट की विसंगति स्वस्थ जीवन के अधिकार के लिए एक गंभीर चुनौती है इसका समाधान किया जाना अति आवश्यक है।

प्रधानमंत्री मोदी जी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग की प्रसिद्धि का कुछ श्रेय प्राप्त किया है। वर्तमान में आयुर्वेद की शक्ति को वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं ।लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने से पूर्व से भारत में इसे व्यापक रूप से जीवन का अंग बनाना होगा। इसी तरह भारतीय देसी घी को हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोन्नत तो करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन देसी घी की शुद्धता और उसकी महत्ता के बारे में देश में ही विशेष माहौल अभी नहीं बना पा रहे हैं।

इस तरह भारतीय गगन में एक सितारे का उदय हुआ है अब यह प्रकाश से अन्य नक्षत्रों की तुलना में कहां तक अपना स्थान बना पाता है यह समय की नजाकत को समझ कर अपनी उर्जा को बढ़ाने की उसकी क्षमता पर निर्भर करेगा। प्रारंभिक नक्षत्रों ने जिन्होंने अपना स्थान बना दिया उनके समय की परिस्थितियां अलग थी आज की परिस्थितियां अलग है लेकिन इसके पास पहले की तुलना में संसाधनों की एवं तकनीकी प्रचुर उपलब्धता है। आशा करते हैं कि यह नवीन सितारा अपने पूर्व के नक्षत्रों से भी अधिक दैदीप्यमान हो।

( आम नागरिक)

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