उद्यमी गतिविधि के निर्धारक तत्व
इनमें जनसंख्या की विशेषताएं, अन्य जिला स्तरीय परिस्थितियां, विनियामक ढांचे तथा संकुलन की मितव्ययताएं शामिल है।
ऽ जिले में उच्चतर शिक्षा स्तर बेहतर मानव पूंजी के विकास को समर्थ बनाते हैं जो कि विचार एवं उद्यमी की बढ़ी आपूर्ति से संबंध रखता है। अतः यह अनुमानित है कि बेहतर शिक्षा वाले जिलों में उच्चतर उद्यमी गतिविधि होगी। जिले में महाविद्यालयों की संख्या तथा साक्षर जनसंख्या का अनुपात जिले में शिक्षा अवसंरचना मापने के लिए उपयोग किया जाता है।
ऽ जिले की आधारिक संरचना
ऽ जनसंख्या का आकार और घनत्व जैसी स्थानीय जनसंख्या विशेषताओं की भूमिका विशेष रूप से नई पफर्मों के लिए मुख्य है, जहां स्थानीय बाजारों को पफर्म के प्राथमिक उत्पाद बाजार माना जाता है और जहां अधिकांश उद्यमी अपने निवास के क्षेत्रा में अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते है।
ऽ जनसंख्या घनत्व स्थानीय संसाधनों और उच्च संसाधन लागत ;उदाहरणतः मजदूरी और भूमि किरायाद्ध के लिए प्रतिस्पर्धा जैसे अन्य संचालित मापदंडों को भी प्रभावित करता है।
ऽ शोधकर्ताओं ने क्षेत्राीय आयु संरचना और उद्यमशीलता दर के बीच एक विलोम-यू-संबंध का प्रदर्शन किया है जो भारत के ‘‘जनसांख्यिकीय लाभांश’’ को दर्शाता है, जो इसे उद्यमिता के एक महत्वपूर्ण चालक के रूप में स्थापित करता है। ऽ जब भौतिक आधारित संरचना और शिक्षा में जिला-स्तर के निवेश पर विचार किया जाता है, डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी और वित्त तक उद्यमियों की सुलभ पहुंच जैसी अन्य विशेषताएं उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और नए उपक्रमों की उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
ऽ विनियामक ढांचे द्वारा भी उद्यमशीलता की गतिविधि बाधित हो सकती है जो प्रवेश और निकास सीमित प्रतिस्पर्धा और अनुपालन और प्रशासन की लागत में वृद्धि द्वारा उद्यमिता को बढ़ावा देना से संबंधित अध्ययन को देखेंद्ध द्वारा इसे बाधित कर सकता है उनमें प्रवेश, प्रतिस्पर्धा नीति, दिवालियापन कानून, कर बोझ, प्रशासनिक और अनुपालन लागत और बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण के लिए विनियामक बाधाएं शामिल हैं।
तेज रफतार उद्यमिता एवं धन सृजन हेतु नीति निर्धरण
ऽ अधिक विद्यालयों तथा महाविद्यालयों की संस्थापना के जरिए साक्षरता के स्तर में वृद्धि करने संबंध्ी उपायों से लोग उद्यमिता के लिए प्रेरित होंगे और पफलस्वरूप स्थानीय संपदा में वृद्धि होगी। भारत के सॉफ्रटवेयर निर्यातों में इंजीनियरी कॉलेजो के निजीकरण के सफल योगदान के पश्चात्, सरकारें शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षण क्षमता की वृद्धि करने के लिए शिक्षा के निजीकरण के विकल्प पर भी विचार कर सकती है।
ऽ दूसरे तारकोल की सड़कों के माध्यम से गांवों तक बेहतर सड़क संपर्क से संभावना है कि स्थानीय बाज़ारों तक पहुंच बढ़ेगी तथा उद्यमिता कार्यकलापों मेें सुधर आएगाा
ऽ तीसरे, जो नीतियां कारोबारी सुगमता तथा लचीले श्रम विनियमों को प्रोत्साहन देती हैं, उद्यमिता कार्यकलापों, विशेषकर विनिर्माणकारी सेक्टर के कार्यकलापों को प्रौत्साहन प्रदान करेंगी।
औषधि मूल्य नियंत्राण आदेश (डीपीसीओ) आवश्यक वस्तु अधिनियम , 1955 की धारा 3 के अंतर्गत जारी एक आदेश है जिसमें औषधियों के मूल्य को विनियमित किया जाता है। डीपीसीओ अन्य वस्तुओं के साथ-साथ उन औषधियों की सूची को विनिर्दिष्ट करता है जोकि मूल्य सीमा और अधिकतम मूल्य की गणना के फार्मूला के अंतर्गत आती है। अनिवार्य औषधियों की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) उन औषधियों की सूची है जो मूल्य नियंत्राण के अंतर्गत आती है। उदाहरण के लिए डीपीसीओ, 2013 में 27 उपचारात्मक समूहों में 680 अनुसूचित औषधि निरूपण हैं जिनको मूल्य विनियमित है। राष्ट्रीय औषधालय मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एन पी पी ) औषधालय उत्पादों के मूल्य, में संशोधप और डी पी सी ओ के प्रवर्तन के लिए उत्तरदायी है। भारत सरकार ने डी पी सी ओ में अनेक बार संशोधन किए है। और हाल में वर्ष 2013 में संशोधान किया है। वर्ष 2013 तक डीपीसीओ ने लागत आधारित मूल्य निर्धाारण पद्धति का प्रयोग कर मूल्य की अधिकतम सीमा के विनिर्दिष्ट किया जिसमें अधिकतम मूल्य की गणना लागत के उस गुणक के रूप में की जाती थी जो उत्पादक द्वारा औषधि के प्रोत्साहन और वित्तीयन में खर्च होता था। यह गुणक, जिसे अधिकतम अनुदेश पश्च-विनिर्माण व्यय (एमएपीई) कहा जाता था, भारत में आयात किए जाने वाले फार्मुलेशनों के लिए 50 प्रतिशत पर और स्वदेशी रूप में विनिर्मित फार्मुलेशनों के लिए 100 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया था। वर्ष 2013 में भारत ने पहली लागत आधारित मूल्य निर्धारण के स्थान पर बाजार आधारित मूल्य निर्धारण को अपनाया। बाजार आधारित मूल्य निर्धारण में सरकर वह मूल्य का निर्धारण उस अधिकतम मूल्य के रूप में करती है जिसे खुदरा विक्रेता संदर्भ मूल्य पर प्रभारित कर सकता है। जो आई एम एस हैल्थ नामक बाजार अनुसंधान फर्म द्वारा उपलब्ध करवाएं गए बाजार आंकड़ों पर आधारित 01 प्रतिशत या इससे अधिक शेयर वाले सभी ब्रांडों के मूल्यों का साधारण औसत होता है। इस आदेश ने एनएलईएम में विनिर्दिष्ट सभी फार्मुलेशनों के 16 प्रतिशत तक अधिकतम मूल्य का निर्धारण किया।