इस तकनीक को परखनली शिशु तकनीक भी कहा जाता है | यह तकनीक उन जोड़ों के लिए वरदान है जो की कुदरती रूप से प्रजनन के सक्षम नहीं है | उनके लिए एक बच्चे को प्रयोगशाला की परखनली में तैयार किया जाता है और उसे महिला के गर्भशय में रख कर विकास करने के बाद कुदरती रूप से जन्म दिया जाता है |
इसे आईवीऍफ़ तकनीक भी कहा जाता है |लेटिन भाषा में कांच को विट्रो कहते हैं।
सबसे पहले बहुत से परीक्षणों की मदद से यह पता लगया जाता है की क्या आईवीऍफ़ उपचार के बाद महिला का गर्भाशय बच्चे को सम्भलने के लिए सक्षम है या नहीं |
यह तकनीक उन्हीं महिलाओं में प्रयुक्त की जाती है जिनकी डिम्बवाहिनी नलीका बंद हो लेकिन उनका गर्भाशय स्वस्थ अर्थात गर्भधारण के योग्य हो।
– महिला को अंडे पैदा करने के लिए उत्तेजित दवाएं , हार्मोन्स के साथ साथ और भी कई चीजें उपयोग की जाती हैं | महिला के अंडाशय में हर वक्त अंडे नही रहते केवल प्रजनन के दिनों में ही होते हैं | इसलिए महिला के अंडाशय में अंडे पैदा करके उन्हें निकल कर परखनली में रखा जाता है |
– महिला के साथी पुरुष से वीर्य लिया जाता है , उसमे से अच्छी किस्म के और सबसे उत्तम गुणवत्ता के शक्राणु चुनकर मिश्रित करने के लिए तैयार किया जाता हैं | महिला के अण्डों को परखनली में शकरणुओं के संपर्क में ला कर उन्हें जीवट भ्रूण तैयार किया जाता है |
– कुछ दिन उसे प्रयोगशाला में रख आकर उसके विकास को देखा जाता है | उसमे किसी किसम के विकार एवं बीमारी के लिए परीक्षण किये जाते हैं | सब कुछ सही होने पर उसे महिला के गर्भशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है |
परखनली शिशु विकसित कर दुनिया के लाखों संतानहीन दंपतियों को संतान सुख प्राप्त करने में मदद पहुंचाने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एडवडर्स को चिकित्सा क्षेत्र के लिए वर्ष 2010 का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
उन्होंने स्त्रीरोग विशेषज्ञ सर्जन पैट्रिक स्टेपटो के साथ एक ऐसी प्रक्रिया ईजाद की, जिसके जरिये अंडाणु को शरीर के बाहर निषेचित करने के बाद गर्भाशय में प्रतिरोपित कर दिया जाता है। हालांकि, स्टेपटो का वर्ष 1988 में निधन हो चुका है। मृत व्यक्ति को नोबेल नहीं दिया जाता।
ड़ॉ पेट्रिक एडवडर्स की कोशिशों के चलते 25 जुलाई 1978 में दुनिया के प्रथम परखनली शिशु लुइस ब्राउन का जन्म हुआ था। उनकी इस कामयाबी ने प्रजनन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उस वक्त से लेकर अब तक लाखों बच्चों का जन्म आईवीएफ प्रक्रिया के जरिये हो चुका है।
डॉ. सुभाष मुखर्जी भारत में आईवीएफ तकनीक के प्रवर्तक थे। यह रिपोर्ट कोलकाता में तीन अक्तूबर 1978 को दुनिया की दूसरी परखनली शिशु ‘दुर्गा’ के जन्म का आधार बनी थी।
इंग्लैंड में पहले परखनली शिशु के जन्म के महज 67 दिन बाद ही इस शिशु का जन्म हुआ था। लेकिन अपनेे शोध के खारिज किए जाने के बाद उन्होंने वर्ष 1981 में खुदकुशी कर ली थी। सरकार ने बताया, ‘न केवल उनके शोध को खारिज किया गया बल्कि चिकित्सा बिरादरी द्वारा उन्हें अपमानित भी किया गया।
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